नई दिल्ली। अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर से बुधवार को चार अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर स्पेसएक्स का फाल्कन-9 रॉकेट अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए रवाना हुआ। यह मिशन ‘एक्सिओम मिशन-4’ (AX-4) के तहत लॉन्च किया गया। इस मिशन में भारतीय ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला भी शामिल हैं, जो अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं।
लॉन्च के आठ मिनट बाद सुरक्षित लौटा रॉकेट
इस अभियान के तहत चारों यात्री क्रू ड्रैगन कैप्सूल में सवार हैं। लॉन्च के महज आठ मिनट बाद फाल्कन-9 रॉकेट सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौट आया। स्पेसएक्स ने इसे दोबारा उपयोग के लिए तैयार किया था। उम्मीद है कि कैप्सूल करीब 28 घंटे बाद अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) पर पहुंचेगा।
शुभांशु शुक्ला: अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला भारतीय वायुसेना से हैं और AX-4 मिशन में शामिल हैं। इससे पहले राकेश शर्मा भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री थे। शुभांशु का अंतरिक्ष यात्रा पर जाना भारतीय अंतरिक्ष इतिहास के लिए एक और महत्वपूर्ण कदम है।
फाल्कन-9 की उड़ान में पहले छह बार टली थी लॉन्चिंग
यह लॉन्च पहले मौसम, सॉफ्टवेयर और डेटा अपलोड की तकनीकी दिक्कतों के कारण छह बार टल चुका था। सातवीं बार भी देरी की संभावना थी, लेकिन कुछ ही मिनटों में समस्या हल कर ली गई। इसके बाद भारतीय समयानुसार दोपहर 12:01 बजे रॉकेट के मर्लिन इंजन सक्रिय हुए और लॉन्चिंग सफलतापूर्वक पूरी हुई।

लॉन्च पैड वही, जहां से चंद्रमा पर गया था अपोलो 11
फाल्कन-9 रॉकेट ने कैनेडी स्पेस सेंटर के लॉन्च कॉम्प्लेक्स 39A से उड़ान भरी। यहीं से 1969 में नील आर्मस्ट्रांग अपोलो 11 के माध्यम से चंद्रमा के लिए रवाना हुए थे। इस मिशन का लॉन्च इसी ऐतिहासिक स्थल से किया गया।
फाल्कन-9 रॉकेट की खासियत
फाल्कन-9 स्पेसएक्स द्वारा विकसित दो-चरणीय रॉकेट है। यह ऑर्बिटल-क्लास का दुनिया का पहला पुन: प्रयोग योग्य रॉकेट है। इसमें नौ मर्लिन इंजन लगे हैं जो रॉकेट-ग्रेड केरोसिन और तरल ऑक्सीजन से संचालित होते हैं। इसका पहला चरण (बूस्टर) क्रू कैप्सूल को पूर्व-निर्धारित ऊंचाई और गति तक ले जाने के बाद पेलोड से अलग हो जाता है और पृथ्वी पर लौट आता है।
अब तक के रिकॉर्ड: 492 मिशन, 447 लैंडिंग, 417 बार रीयूज़
स्पेसएक्स के अनुसार, फाल्कन-9 अब तक 492 सफल मिशन पूरा कर चुका है। इसमें 447 लैंडिंग और 417 बार पुन: उपयोग शामिल है। यह तकनीक अंतरिक्ष अभियानों की लागत को काफी हद तक कम करती है।