87वें अखिल भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने दीप प्रज्वलन कर किया। उद्घाटन कार्यक्रम में निर्मलानंदनाथ स्वामी, गो. रु. चन्नबसप्पा, मंत्री चेलुवरायस्वामी, महादेवप्पा, शिवराज तंगड़गी, सभा अध्यक्ष यू.टी. खादर, साहित्यकार चंद्रशेखर कंबार, विधायक और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।
सम्मेलन के मुख्य द्वार, प्रवेश द्वार, पुस्तक मेला और वाणिज्यिक स्टॉल का उद्घाटन विधायकों और मंत्रियों ने किया। इस बार साहित्य सम्मेलन “होम्बाळे अरलिसि कन्नड़ नुड़ी अरलली” (स्वर्णिम भविष्य के साथ कन्नड़ भाषा का उत्थान) के उद्देश्य से आयोजित किया गया। विधायक नरेंद्रस्वामी ने सम्मेलन में संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया।
सम्मेलन के सम्मानित अध्यक्ष गो. रु. चन्नबसप्पा को मंड्या में सर एम. विश्वेश्वरैया की प्रतिमा के पास से साहित्य सम्मेलन के मंच तक भव्य जुलूस के माध्यम से लाया गया।
हिंदी थोपने का विरोध
87वें अखिल भारतीय कन्नड़ साहित्य सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि हिंदी थोपने के माध्यम से कन्नड़ और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इसका विरोध नहीं किया गया, तो हमारी भाषाओं को गंभीर खतरा हो सकता है।
उन्होंने कहा कि कन्नड़ को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उन पर चर्चा होनी चाहिए। केंद्र सरकार से कर संग्रह में राज्य को पर्याप्त हिस्सा नहीं मिल रहा है। अमीर कॉर्पोरेट कंपनियों पर कर घटाने से आम लोगों के हाथ में पैसा नहीं बच रहा, जिससे उनकी क्रय शक्ति कमजोर हुई है। इसी कारण हमारी सरकार ने पंचामृत योजनाओं को लागू किया है।
संविधान की रक्षा पर जोर
मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान पर व्यवस्थित हमला हो रहा है। इसका विरोध करना हम सभी की जिम्मेदारी है। मंड्या की भूमि पर कुछ कट्टरपंथी और हिंसक शक्तियां लोगों के मन में नफरत फैलाने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन यहां के लोगों ने उन्हें भीतर नहीं आने दिया। इसके लिए मैं बधाई देता हूं।
उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन राज्य की समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने कुवेम्पु का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने राज्य की बौद्धिक गुलामी के कारणों और उससे उबरने के तरीकों को स्पष्ट किया है। हजारों वर्षों से पुरोहितवाद ने हमें किस तरह गुलामी में धकेला है, इसकी विस्तृत जानकारी कुवेम्पु ने दी है।
कन्नड़ माध्यम की शिक्षा पर जोर
सम्मेलन के अध्यक्ष गो. रु. चन्नबसप्पा ने कहा कि पहली से दसवीं कक्षा तक कन्नड़ माध्यम में शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। किसी भी स्थिति में अन्य भाषाओं को शिक्षा माध्यम के रूप में थोपना गलत है। उन्होंने सरकार से अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोलने या निजी स्कूलों को इसकी अनुमति देने पर तुरंत रोक लगाने की मांग की।