धर्म-आराधना करने का मुख्य आधार स्तंभ है काया :मुनिश्री राजपद्मसागरजी म.सा

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बेंगलुरू : श्रीरामपुर स्थित जे. पी. पी .श्रमणी भवन में अनेक श्रद्धाभाव से सूनने आए श्रावक एवं श्राविकाओं को नव प्रकार के पूण्य में से काया (शरीर) पूण्य के विषय में समझाते हुए मुनि श्री राजपद्मसागरजी म.सा ने कहा कि हमने पूर्व भव में अच्छा पूण्य किया होगा, इसलिए इस भव में सुंदर शरीर मिला है, ये काया धर्म आराधना साधना करने का एवं सेवा, दान भक्ति करने का अवसर, हम काया से ही कर सकते हैl इसिलिए परमात्मा को धन्यवाद कहना कि प्रभु मुझे सपूर्ण अंग मिले हैl शरीर अच्छा भी मिला हैl

तो इस शरीर का धर्म-आराधना में करने मे लगाएl उसका उपयोग साधनामार्ग में करे और विमलाचल महातीर्थ की इतिहास बताते हुए करा कि विमलाचल महातीर्थ की यात्रा करने से आत्मा मल रहित बनती है, पापों को खपाती है, पापी को भी पावन बनाती है, पुण्य-पाप की बारी के इतिहास बताया कि धर्मनगरी पाटण से हर कार्तिक पुनम – चैत्री पूनम के दिन यात्रा कर का संकल्प थाl कामाशा शेठ का पुत्र प्रतापचंद को और गुजरात में उस समय दुस्काल पड़ा थाl पानी की कभी, खाने की कमी थीl प्रतापचंद जी शंत्रुजय की यात्रा करने निकले है उनको चौविहार अट्ठम की तपस्या थीl पालीताणा पहुंचे और ऊंट, रबारी और प्रतापचंद जी की मृत्यु होगा उनकी याद मे पुण्य-पाप की बारी संघने बनवाईl


मुनिश्री श्रमणपद्मसागरजी म.सा ने कहा कि उत्तम द्रव्यों से परमात्मा की पूजा करने से उत्तमभाव आते हैl संघ सचिव नरेंद्र आच्छा पधारे हुए सभी महानुभाव का अभिनंदन करते हुए विशेष रूप से दीक्षा का भाव रखने वाले सुमित के माता पिता का संघ की ओर से अभिनंदन किया गया।

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