अरिहंत परमात्मा के वचनों के पर श्रद्धा होनी चाहिए – मुनि श्री राजपद्मसागरजी म.सा

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बेंगलुरू । जे.पी.पी श्रमणी भवन में प्रवचन के दौरान श्रावक एवं-श्राविकाओं को समझाते हुए कहा कि प्रभुने जो कहा है वह मेरे आत्महित के लिए है, परमात्मा सर्वज्ञ है, उन्होंने जो धर्मतत्व का प्रतिपादन किया, उसमें कोई विरोध नहीं। अर्थात् तर्क की भूमिका पर कोई विसंगति नहीं मिलती, जो अपने अंतरंग राग-द्वेष आदि दोषों का समूल नाश कर देते है, उनको अपने पूर्ण ज्ञान में जो द्रव्य जैसा दिखाता है।

पैसा ही बता देते है, ऐसे पूर्णज्ञानी केवलज्ञानी परमात्माने जो बताया है, वहीं सर्वश्रेष्ठ है, उत्तम है, एसे अरिहंत परमात्मा के दर्शन-पूजा कि के विषय में समझाते हुए कहा कि जब मंदिर जाते है तो तीन नीसीहि आती है पहली नीसीही इम मंदिर में प्रवेश करते है तब बोलनी चाहिए, नीसीहि का मतलब होता है त्याग करना, मैं संसार के समस्त कार्य एवं बातों का त्याग करता हूँ ,सिर्फ परमात्मा के मंदिर संबंधी बाते होती है, घर की बातो का त्याग करना वो पहेली निसीही है।

शंत्रुजय की महिमा बताते हुए कहा कि वाघणपोड का इतिहास बताते हुए कहा वीर विक्रम सिंह और शेरनी के बीच युद्ध हुआ था, शेरनी जोभी यात्रालु आते थे, उनकी हिंसा करत थी यात्रा बंध हो गयी थी. तब वीर विक्रम सिंह ने शेरनी के साथ युद्ध करके उसको हराया, होनो घायल हुए और फिर यात्रा चालु हुई. मुनि श्री श्रमणपद्मसागरजी म.सा ने कहा कि प्रभुसे कनेक्शन रखना है, तो मंदिर जाना पड़ेगा।

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