नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन उनका त्यागपत्र सामने आया, जिससे न सिर्फ़ सत्ता पक्ष बल्कि विपक्षी खेमे में भी चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। इस्तीफे को लेकर सूत्रों ने जो संकेत दिए हैं, वह सीधे-सीधे एक विपक्ष समर्थित महाभियोग प्रस्ताव से जुड़ते हैं, जिससे सरकार की रणनीति ध्वस्त हो गई।
विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव से बिगड़ी बात
सूत्रों के अनुसार, सरकार की योजना थी कि जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव सबसे पहले लोकसभा में लाया जाए ताकि राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। लेकिन उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस प्रस्ताव को राज्यसभा में विपक्ष के सहयोग से आगे बढ़ाया, जिससे सरकार की योजना को झटका लगा।
बताया जा रहा है कि उपराष्ट्रपति ने खुद विपक्ष के नेताओं से संपर्क कर इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करवाए। कुल 63 विपक्षी सांसदों ने इस पर हस्ताक्षर किए, जबकि एनडीए के किसी भी सांसद ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। यह स्पष्ट संकेत था कि यह कदम सरकार की मंशा से हटकर था और स्वतंत्र राजनीतिक सोच का परिणाम था।
बिजनेस एडवाइजरी कमिटी में हुआ खुलासा
धनखड़ ने राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमिटी की बैठक में इस प्रस्ताव की जानकारी दी, जो सरकार के लिए अप्रत्याशित थी। भाजपा नेतृत्व और सरकार दोनों इस पहल से असहज हुए। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इसी कारणवश केंद्र और उपराष्ट्रपति के बीच मतभेद गहराते गए और अंततः उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
पीएम मोदी की प्रतिक्रिया ने बढ़ाई अटकलें
धनखड़ ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ इसे सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच तनाव की परिणति मान रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया भी इस चर्चा को और बल देती है। इस्तीफे के लगभग 15 घंटे बाद पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “जगदीप धनखड़ जी को देश की सेवा के कई अवसर मिले, जिनमें भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में सेवा भी शामिल है। उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं।” इस औपचारिक और संक्षिप्त बयान से साफ होता है कि संबंधों में तल्खी थी।