देशभर से राजपुरोहित समाज के प्रवासी होंगे शामिल, 31 मई को प्राण-प्रतिष्ठा
सिवाना, रमणिया। बालोतरा जिले के रमणिया गांव स्थित प्राचीन चामुण्डा माता मंदिर में 28 मई से चार दिवसीय प्रतिष्ठा महोत्सव का शुभारंभ होने जा रहा है। 31 मई को शुभ मुहूर्त में प्राण-प्रतिष्ठा का मुख्य आयोजन संपन्न होगा। इस विशेष अवसर पर देशभर से राजपुरोहित समाज के प्रवासी बड़ी संख्या में सम्मिलित होंगे।
संतों का दिव्य सान्निध्य, आध्यात्मिक वातावरण से गूंजेगा रमणिया
इस आयोजन की गरिमा को और बढ़ाने के लिए कई ख्यातिप्राप्त संतगण उपस्थित रहेंगे। इनमें ब्रह्मधाम आसोतरा के संत तुलछारामजी महाराज, सांथू मठ के शंकर स्वरूपजी, आत्मानंद सरस्वती मंदिर जालोर के गादीपति रामानन्दजी, कालन्द्री मठ के देवानन्द सरस्वती, निर्मल कुटीर के निर्मलदासजी, रविधाम थलवाड़ के सत्यानन्द ब्रह्मचारी, भैंसवाड़ा-लेटा के रणछोड़ भारती, धोरोलेश्वर मठ के महाबलवीर गिरि, हल्देश्वर मठ के भीम गिरि, गंगानाथजी, चेतनानन्दजी, ध्यानारामजी, नृत्य गोपालदास समेत कई संतगण रमणिया की भूमि को पवित्र करेंगे।
राजस्थान से लेकर देश के विभिन्न हिस्सों से संत-भक्तों का आगमन
महोत्सव में लुदराड़ा, असाड़ा, परेऊ, खण्डप, चौहटन, तारातरा, शिकारपुरा, सिणधरी, उन्दरा फांटा, कनाना, पुनासा, दादाल, समदड़ी, मोहिवाड़ा, भाद्राजून की ढाणी, मोकलसर, गादेसरा, मांगी धीरा, मायलावास सहित कई स्थानों से संत और भक्त भाग लेंगे।
तीन दिन झांकियां और भजन संध्या, सांस्कृतिक संग धार्मिक रंग
धार्मिक कार्यक्रमों के साथ सांस्कृतिक रंग भी भरपूर होंगे। 28 मई को श्याम पालीवाल एंड पार्टी, 29 मई को भवानीसिंह राजपुरोहित एंड पार्टी, (कोलु) व उदयसिंह राजपुरोहित एंड पार्टी (फुलासर), 30 मई को गजेन्द्र राव एंड पार्टी द्वारा भजन संध्या आयोजित की जाएगी। वहीं दिल्ली से विशेष रूप से आमंत्रित कुनाल राज एंड पार्टी द्वारा तीनों दिन आकर्षक झांकियां प्रस्तुत की जाएंगी। मंच संचालन चंदन सिंह राजपुरोहित धांगड़वास करेंगे।
कर्मकांड संचालन विद्वानों के सान्निध्य में
पूरे आयोजन के धार्मिक अनुष्ठान और कर्मकांडों का संचालन पं. भूपेन्द्र द्विवेदी की अगुवाई में पं. विजय कुमार दवे व पं. महेन्द्र कुमार दवे (मोकलसर) द्वारा संपन्न किया जाएगा।

इस आयोजन से जुड़े हैं गांव और प्रवासी समाज की आस्था व भावनाएं
यह आयोजन सिर्फ एक मंदिर प्रतिष्ठा नहीं बल्कि पूरे राजपुरोहित समाज की एकता, परंपरा और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक बन गया है। रमणिया का यह आयोजन आने वाले वर्षों के लिए एक मिसाल बनेगा।