पार्टी नेताओं ने कहा- आज तक ऐसा नहीं हुआ
जयपुर। भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में ‘संकल्प से सिद्धि’ अभियान की शुरुआत की है, जिसके तहत राजस्थान भर में विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। लेकिन इस बार पार्टी ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने राजस्थान की सियासत में हलचल पैदा कर दी है।

भाजपा ने इस अभियान की जिला स्तरीय तैयारियों के लिए संयोजक और तीन सदस्यों की समितियां गठित की हैं। इन समितियों की नियुक्तियों में उदयपुर देहात जिले की जिम्मेदारी निर्दलीय विधायक चन्द्रभान सिंह आक्या को सौंपी गई है। आक्या वही विधायक हैं जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी नरपत सिंह राजवी को हराकर जीत दर्ज की थी।
यह निर्णय कई मायनों में असाधारण है। भाजपा ने पहली बार किसी संगठनात्मक कार्य के लिए ऐसे व्यक्ति को ज़िम्मेदारी दी है, जो न सिर्फ पार्टी से बाहर है बल्कि जिसने पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को हराया हो। इससे पार्टी की रणनीति और बदलते सियासी समीकरणों का संकेत मिल रहा है।
राजनीतिक संदेश और रणनीति
चन्द्रभान सिंह आक्या भाजपा से जुड़े रहे हैं, लेकिन टिकट नहीं मिलने के बाद बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। अब पार्टी ने उन्हें ‘संकल्प से सिद्धि’ अभियान में शामिल कर साफ कर दिया है कि भाजपा जमीनी प्रभाव और जनाधार रखने वाले नेताओं को साथ लेने से नहीं हिचक रही।
यह फैसला एक तात्कालिक रणनीति से ज्यादा दीर्घकालिक सियासी योजना का हिस्सा माना जा रहा है। भाजपा के इस कदम से साफ है कि वह 2028 की तैयारी में अभी से जुट गई है और ऐसे प्रभावशाली चेहरों को अपने पाले में बनाए रखने या दोबारा जोड़ने की कोशिश कर रही है जो संगठन से नाराज होकर बाहर हो गए थे।
राजवी की हार और आक्या की जीत: एक बड़ा संकेत
उदयपुर देहात सीट पर 2023 में पार्टी ने वरिष्ठ नेता और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी को टिकट दिया था। लेकिन राजवी आक्या के सामने चुनाव हार गए। यह पराजय पार्टी के लिए बड़ा झटका थी, क्योंकि आक्या का स्थानीय जनाधार राजवी की राजनैतिक विरासत पर भारी पड़ा।
अब जब पार्टी ने उसी आक्या को संगठनात्मक जिम्मेदारी दी है, तो यह संकेत है कि भाजपा भविष्य में राजवी जैसे नेताओं की जगह ज़मीनी स्तर पर मजबूत चेहरे तैयार करने पर ज़ोर दे रही है।
पार्टी में भीतरघात बनाम व्यवहारिक राजनीति
हालांकि पार्टी के कुछ पुराने नेताओं ने इस फैसले को लेकर नाराजगी भी जताई है। उनका कहना है कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की जगह एक बागी विधायक को जिम्मेदारी देना संगठन के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। लेकिन भाजपा नेतृत्व इसे व्यवहारिक राजनीति मान रहा है – जहां जीतने की क्षमता और जनसंपर्क को प्राथमिकता दी जा रही है।
चन्द्रभान सिंह आक्या को जिम्मेदारी देकर भाजपा ने स्पष्ट संकेत दिया है कि संगठन अब लकीर का फकीर नहीं रहेगा। वह समय, परिस्थितियों और जनमत के अनुसार अपने फैसलों में लचीलापन दिखाएगा – भले ही उसमें कुछ परंपराएं तोड़नी क्यों न पड़ें। राजस्थान की राजनीति में यह एक साहसिक प्रयोग है, जो आने वाले चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।