क्या BJP के गढ़ में सेंध लगाने की है तैयारी, क्या है रणनीति?
कांग्रेस इस समय अपने सबसे नाजुक दौर से गुजर रही है। ज्यादातर राज्यों में भाजपा का ही शासन चल रहा है। कुछ ऐसे राज्य भी हैं जहां पर कांग्रेस का नामोनिशान तक जा चुका है। गुजरात में भी कांग्रेस की हालत फिलहाल बेहद नाजुक है। हाल ये है कि 30 वर्षों से पार्टी ने वहां अपनी सरकार बनाने की तो छोड़िए, बची-खुची सीटें भी गंवाई ही हैं। ऐसे में इस बार कांग्रेस की ओर से गुजरात में ये बड़ा अधिवेशन बहुत कुछ इशारा करता है। पीएम मोदी के गढ़ में कांग्रेस के इतने बड़े आयोजन का क्या है उद्देश्य? ये सवाल उठना लाजमी है कि इंडियन नेशनल कांग्रेस ने आखिरकार अपना ये अधिवेशन गुजरात में ही क्यों रखा है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस अधिवेशन के जरिए कांग्रेस फिर से अपनी खोई हुई सत्ता को वापस पाना चाहती है। क्या गांधी के राज्य में फिर से ‘गांधी’ की वापसी हो सकेगी? इसे लेकर आज सीडब्ल्यूसी की बैठक में मंथन हो सकता है।
गुजरात की नई पौध को पार्टी से जोड़ने का मकसद
गुजरात, जो कि महात्मा गांधी का जन्म स्थान है, वहां पर कांग्रेस 30 सालों से सत्ता से बाहर है। लगातार हार के बाद पार्टी अपनी खोई जमीन को फिर से तलाशने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस 1995 के बाद से सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है। हाल ये है कि मतदाताओं की नई पीढ़ी ने तो प्रदेश में कभी कांग्रेस की सत्ता देखी ही नहीं है। ऐसे में इस बार कांग्रेस गुजरात की नई पौध को पार्टी से जोड़ने की कवायद में जुट गई है।
‘बापू’ के जरिए जनता से जुड़ने की कवायद
गुजरात महात्मा गांधी का जन्म स्थान है। 1961 के बाद आज फिर से कांग्रेस गुजरात में अधिवेशन कर रही है। खास यह है कि इस साल महात्मा गांधी के कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की 100वीं वर्षगांठ भी है। ऐसे में पार्टी बापू की याद दिलाकर गुजरात की जनता को अपने साथ कनेक्ट करने का मौका छोड़ना नहीं चाहती है। अधिवेशन में करीब 1700 से अधिक कांग्रेस नेता और पदाधिकारी भाग लेंगे।
1985 के बाद से गिरता गया कांग्रेस का प्रदर्शन
कांग्रेस की स्थिति गुजरात में ठीक नहीं है। 1985 में कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा में 182 में से कुल 149 सीटों पर रिकॉर्ड जीत हासिल की थी। हालांकि इसके बाद से उसका प्रदर्शन लगातार गिरता गया। हाल ये रहा कि 1990 में 33 और 1995 में पार्टी 45 सीटों पर धड़ाम हो गई। 1998 में भी पार्टी सिर्फ 53 सीट ही पा सकी, जबकि 2002 में 51 और 2007 में पार्टी को 59 सीटों से संतोष करना पड़ा। 2012 में पार्टी ने 61 सीटें और फिर 2017 में यह 77 सीटों तक पहुंची, लेकिन 2022 में फिर से पार्टी पूरी तरह धड़ाम हो गई और मात्र 17 सीटें ही हासिल कर सकी थी।
गलतियों की भरपाई करने की कवायद
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने अपने पिछले दौरे में कहा था कि कांग्रेस के कई नेता और कार्यकर्ता भाजपा से मिले हुए हैं। ऐसे नेताओं का जमीनी स्तर पर पता लगाना होगा और जो उनसे मिले हैं उन्हें उसी दल में वापस भेजना होगा। उनके इस बयान के बाद कई नेताओं में नाराजगी भी आ गई थी। इस अधिवेशन में पार्टी ऐसे नाराज नेताओं को भी साधने की कोशिश करेगी।
गुजरात फतेह से ही मिलेगा मोदी को हराने का मंत्र
कांग्रेस गुजरात में स्थानीय तौर पर खुद को मजबूत कर मोदी के गढ़ में ही उन्हें हराने की तैयारी कर रही है। यदि यहां वह विजय प्राप्त कर लेती है, तो वह अपनी रणनीति को लोकसभा चुनावों में भी फॉलो करेगी। ऐसे में मोदी को हराने का मंत्र गुजरात में जीत के साथ ही मिल सकता है।
5 राज्यों में 631 सीटों पर कांग्रेस ‘जीरो’
कांग्रेस का हाल यूं तो ज्यादातर राज्यों में बेहाल है, लेकिन दिल्ली, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम में तो पार्टी ने अपना खाता तक नहीं खोला है। इन राज्यों में विधानसभा की कुल 631 सीटों पर कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं काबिज है।
