दिल्ली में कांग्रेस को अपना नया राष्ट्रीय दफ्तर मिल गया है। देश के मुख्य विपक्षी दल के नए दफ्तर का पता अब 9, कोटला रोड है जबकि पिछले 47 साल से पार्टी 24, अकबर रोड से अपना नेशनल हेडक्वार्टर चला रही थी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी, पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा सहित तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी में नए मुख्यालय का उद्घाटन किया गया। इसका नाम इंदिरा भवन रखा गया है।
कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए निश्चित रूप से यह बहुत बड़ा मौका है, जब पार्टी ने राष्ट्रीय राजधानी में अपना नया मुख्यालय खोला है। इसलिए इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए देश भर से पार्टी के नेता दिल्ली पहुंचे।
कार्यक्रम में कांग्रेस वर्किंग कमेटी, कांग्रेस के विशेष और स्थाई आमंत्रित सदस्य, प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के पदाधिकारी, एआईसीसी के पदाधिकारी, पार्टी के सभी सांसद, पूर्व सांसद, मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों सहित फ्रंटल संगठनों से जुड़े तमाम पदाधिकारी शामिल रहे। कांग्रेस का यह नया दफ्तर पार्टी की जरूरतों को देखते हुए तैयार किया गया है। इसमें तमाम तरह की आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं।
खट्टी-मीठी यादों का गवाह है कांग्रेस मुख्यालय
24, अकबर रोड के पुराने दफ्तर से कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं की ढेर सारी यादें जुड़ी हैं। इस दफ्तर से ही इंदिरा गांधी ने देश की सत्ता में वापसी की। इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की मौत, इंदिरा गांधी की हत्या, राजीव गांधी का कम उम्र में प्रधानमंत्री का पद संभालना और उनकी हत्या, सोनिया गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना, कांग्रेस का कई सालों तक केंद्र में गठबंधन की सरकार चलाना और फिर पिछले 11 सालों से सत्ता से बाहर होना, ऐसे तमाम उतार-चढ़ावों का गवाह कांग्रेस का यह पुराना दफ्तर रहा है।
यह दफ्तर कांग्रेस को आपातकाल के बाद मिला था। यह वह वक्त था जब इंदिरा गांधी के पास केवल गिने-चुने नेता बचे थे और कांग्रेस टूट चुकी थी। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस में अपने धड़े को अकबर रोड पर स्थित एक सरकारी आवास – टाइप VII बंगले में ट्रांसफर कर दिया था।
24, अकबर रोड का इतिहास करीब 100 साल पुराना है। आजादी से पहले वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो की कार्यकारी परिषद के सदस्य सर रेजिनाल्ड मैक्सवेल यहीं रहते थे। 1960 के दशक में इस बंगले में बर्मा के राजदूत रहे और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने भी अपनी किशोरावस्था के शुरुआती साल यहां बिताए थे।