निर्जीव पत्थरों पर
लाखों के गहने
सजते देखे हैं मैंने।
और मंदिर की सीढ़ियों पर
एक रुपये के लिए तरसता
देश का भविष्य
देखा है मैंने।
छप्पन भोग और
मीठे पकवान
एक मूर्ति के आगे सजाए जाते हैं।
पर वहीं मंदिर के बाहर
एक भूखा इंसान
तड़पता देखा है मैंने।
मजार पर ओढ़ाई जाती हैं
रेशमी चादरें।
और उसी के बाहर
ठंड से कांपती
एक वृद्ध मां को
देखा है मैंने।
लाखों रुपये मंदिर निर्माण में
दान कर दिए जाते हैं।
और अपने घर में
500 रुपये के लिए
कामवाली बाई को
बदलते देखा है मैंने।
सुना है, वह अपने दुखों का
हल ढूंढने
मंदिर की सीढ़ियां चढ़ गया।
लेकिन अपने ही माता-पिता को
वृद्धाश्रम में
रोते देखा है मैंने।
सच्चे देसी घी से
अखंड ज्योति जलाते रहे।
और गरीब भूखे-प्यासे
बचे हुए रोटियों के लिए
झगड़ते देखे हैं मैंने।
जिसने अपने माता-पिता को
कभी भरपेट रोटी नहीं दी।
आज वही
समाज में भंडारा कराते
देखा है मैंने।
अब कहने के लिए
शब्द भी कम पड़ते हैं।
इंसानों के हजारों
रूप बदलते देखे हैं मैंने।