देश की सर्वोच्च अदालत की पांच जजों की संविधान पीठ ने असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। बता दें कि इस मामले की सुनवाई सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही थी, जिसको लेकर 12 दिसंबर 2023 को 17 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था और आज उस कानून को बरकरार रखने का फैसला दिया गया है।
बता दें कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A को असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में जोड़ा गया था। मान्यता दी थी। धारा 6A को चुनौती देने वाली याचिका में 1971 के बजाय 1951 को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में शामिल करने की कट-ऑफ तिथि बनाने की मांग की गई थी।
Supreme Court की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला
CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है। संशोधन में कहा गया था कि जो लोग 1985 में बांग्लादेश समेत क्षेत्रों से 1 जनवरी 1966 या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले असम आए हैं और तब से वहां रह रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
1971 तक का तय हुआ था कटऑफ
इस प्रावधान के चलते असम में बांग्लादेशी प्रावासियों को नागरिकता देने की अंतिम तारीख 1971 तय कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 5 दिसंबर 2023 को असम में सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A से जुड़ी 17 याचिकाओं पर 5 जजों की बेंच में सुनवाई शुरू कर दी थी। दो जजों की बेंच ने 2014 में इस मामले को कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के पास भेज दिया था।
कोर्ट ने कहा था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो बताता हो कि 1966 से 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का असर असम की जनसंख्या और सांस्कृतिक पहचान पर पड़ा हो।
क्या है नागरिकता का ये पूरा विवाद?
इस धारा 6a के प्रावधान के मुताबिक जो बांग्लादेश अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम आए हैं, वो भारतीय नागरिक के तौर पर खुद को रजिस्टर करा सकते हैं। हालांकि 25 मार्च 1971 असम आने वाले विदेशी भारतीय नागरिकता के लायक नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया कि 1966 के बाद पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से अवैध शरणार्थियों के आने के चलते असम का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ा है।
राज्य के मूल निवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकार ने नागरिकता कानून में 6A को जोड़कर अवैध घुसपैठ को कानून मंजूरी दे दी है। हा2014 में इसे संविधान पीठ के सामने चैंलेंज किया गया था और अब कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए 6A को बरकरार रखा है।