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Thursday, November 14, 2024

जीवन में धर्म की प्रकृति बिना नहीं मिलता है सुख है. =मुनिश्री राजपद्मसागरजी म.सा.

बेंगलुरू : जे. पी.पी श्रमणी भवन में श्रद्धालुओं को समझाते हुए मुनि श्री राजपद्मसागरजी म.सा कहा कि पाप उपार्जन करने के अनेक स्थान होते पर धर्म करने के स्थान सीमीत यानि थोडे-कम स्थान रहते है। ऐसे स्थान पर जाकर धर्म- आराधना करनी चाहिए. और जितना हो सके उतना पाप स्थानों में नहिं जाना चाहिए। नवकार मंत्र के विषय में कहा कि नमस्कार महामंत्र सर्वसिद्धिदायक महामंत्र है श्रद्धा भाव से आराधना- साधना-जाप एवम् स्मरण करने से अनेक प्रकार कि सिदिया प्राप्त होती है। नवकार मंत्र के साथ- साथ – तीर्थ यात्रा करनी है।

अष्टापद – सिद्धाचल ऐसे तारक. तीर्थो की यात्रा होती है. जो हमे पवित्र – एवं हमारी आत्मा को निर्मल-स्वच्छ बनाते है । विमलाचल की यात्रा करने से अनंत जन्मो से हमारी आत्मा में मेल – मल-कर्म लगे है । तो ऐसे पावन तीर्थों की स्पर्शना से आत्मा मल-रहित बनती है।


और मुनिश्री श्रमणपद्मसागरजी म.साने करा कि.. विनय गुण जिनशासन का मूल है । और मोक्षमार्ग के अनुष्ठानो में व्यापक है। विनय गुण के द्वारा-गुणवानो की भक्ति एवं सेवा करने से आध्यात्मिक मार्ग सरल बन जाता है । दिनांक 18 रविवार के दिन वंदे जिनशासनम के विषय में पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद से अद्भूत प्रस्तुति सुबह 8: बजे और से 18 से संतिकर महातप का शुभारंभ होने जा रहा है।

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