वाराणसीः अयोध्या में भव्य राम मंदिर में प्रभु श्री राम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करवाने वाले मुख्य पुजारी आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित का आज निधन हो गया। आचार्य ने शनिवार सुबह 6 बजकर 45 मिनट पर वाराणसी में आखिरी सांस ली। परिजनों ने इस बात की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आचार्य 86 वर्ष के थे और वह पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। परिजनों ने ये भी बताया कि आचार्य का दाह संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा।
लक्ष्मीकांत दीक्षित वाराणसी के मीरघाट स्थित सांगवेद महाविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना काशी नरेश के सहयोग से की गई थी। आचार्य लक्ष्मीकांत की गिनती काशी में यजुर्वेद के बड़े विद्वानों में होती थी। इतना ही नहीं लक्ष्मीकांत दीक्षित पूजा पद्धति में भी सिद्धहस्त माने जाते थे। लक्ष्मीकांत दीक्षित ने वेद और अनुष्ठानों की दीक्षा अपने चाचा गणेश दीक्षित भट्ट से ली थी। मूल रूप से महाराष्ट्र के शोलापुर जिले के जेऊर के रहने वाले लक्ष्मीकांत दीक्षित का परिवार कई पीढ़ियों पहले काशी में आ कर बस गया था। उनके पूर्वजों ने नागपुर और नासिक रियासतों में भी धार्मिक अनुष्ठान कराए हैं। लक्ष्मीकांत के बेटे इसे पहले सुनील दीक्षित ने बताया था कि उनके पूर्वज पंडित गागा भट्ट ने ही 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक भी करवाया था।
22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान 121 पुजारियों की टीम ने किया था। काशी के विद्वान लक्ष्मीकांत दीक्षित इसके मुख्य पुजारी थे। वैसे तो 16 जनवरी से ही प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान आरंभ हो गए थे, लेकिन 22 जनवरी को मंगल अनुष्ठान संपन्न किए गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) अयोध्या में मुख्य यजमान के रूप में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल हुए थे। तब पीएम मोदी ने पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित से मुलाकात की थी।
कौन थे आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित?
बता दें कि आचार्य दीक्षित की गिनती काशी के वरिष्ठ विद्वानों में होती है। आचार्य दीक्षित के द्वारा काशी के 121 ब्राह्मणों ने अयोध्या के भव्य मंदिर में श्रीरामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी। लक्ष्मीकांत दीक्षित मूल रूप से महाराष्ट्र के शोलापुर जिले के रहने वाले थे, लेकिन कई पीढ़ियों से उनका परिवार काशी में रह रहा है। वे सांगवेद महाविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य थे।
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